Tuesday, January 20, 2009

सृष्टि रचना की पुनरावृत्ति कविता रूप में की गयी है।

उपरोक्त भजनों की तिथि का आकलन करना कठिन है परंतु "भजन ८'', जिस भजन संग्रह में आता है वह तिथि संभवतः १००० से ९०० ई.पू. के मध्य है।''१ इस तिथि के संदर्भ में एक लेखक कहते हैं कि "कुछ टीकाकारों के विरोध स्वरूप भी हम इसे बंधुवाई पूर्व का भजन मानने को तैयार है।''२ उक्त दोनों को देखने पर हमारे विचार में उत्पत्ति के प्रथम अध्याय में वर्णित सृष्टि रचना की पुनरावृत्ति कविता रूप में की गयी है।
भजन १०४ की यद्यपि कोई निश्चित तिथि नहीं है परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि यह भी बंधुवाई पूर्व का भजन है। पु.नि. के विद्वान जिनमें गंकुल-बट्टनवाइजर, आदि भी उक्त समयाकाल से सहमत हैं। इस भजन का केन्द्र बिंदु याहवें की महिमा उसके सृष्टि कार्य हेतु है तथा
पृथ्वी पर उसका निरंतर प्रगटन तथा सब कुछ उसकी इच्छा पर निर्भर है। इस भजन में तत्कालीन इसरायली संस्कृति के चारों ओर फैली संस्कृतियों में प्रचलित कथाओं की ध्वनि भी प्रतीत होती है। जैसे प्राचीन आयरेनियम विचार में देवी को प्रकाश सदृश्य वस्त्र में लपेटते थे, बाबुलीय कथा में दक्खिनी हवा के पंखों का संदर्भ आता है, "प्राचीन मिस्त्री संदर्भ में सूर्य देवता हेतु, फिरौन "अमेनोफिस चतुर्थ'' द्वारा एक स्तुति गान लिखा गया। हमारे भजन की १-५ तथा १०-२६, पदों में समानता प्रदर्शित होती है।''३ इन भजनों में परमेश्वर को प्रकृति के परमेश्वर के रूप में देखा गया है। उसे तीन प्रमुख स्वरूप दिये हैं दोनों भजनों में।

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