Wednesday, January 28, 2009

माननीय रूप से परमेश्वर को किस रूप में पहचानें।

भजन १०४ के प्रथम नौ पद तथा भजन ८ का तीसरा पद परमेश्वर को सर्वोच्च सृष्टिकर्ता के रूप में प्रगट करता है साथ ही यह बताता है कि माननीय रूप से परमेश्वर को किस रूप में पहचानें। इस भजन में भजनकार "शायद यह प्रस्तुत करता है कि जिस प्रकार एक बालक का साधारण विश्वास मूक रूप से किसी व्यक्ति के प्रति होता है बजाय इसके कि वह उसकी खोज करे। इसी प्रकार परमेश्वर की महिमा आकाश के ऊपर इसरायलीयों द्वारा देखी गयी।''१ एक सामान्य सत्य है कि परमेश्वर की महिमा दिखाई देती है उसकी सम्पूर्ण सृष्टि में। चन्द्रमा एवं नक्षत्रों को स्थापित करने के द्वारा उसका हाथों का हस्त शिल्प प्रगट होता है तथा वह उस प्रकार सम्पूर्ण संसार को प्रगट करता है।

Saturday, January 24, 2009

तत्कालीन संस्कृति में ईश्वर को सर्वसर्वोच्च तथा शासक के रूप में पहचाना गया।

इसरायली दृष्टिकोण में परमेश्वर को एक सर्वोच्च परमेश्वर के रूप में देखा गया है। इसरायली विचार में उसे सब वस्तुओं का सृजनकर्ता माना जाता था। तत्कालीन संस्कृति में ईश्वर को सर्वसर्वोच्च तथा शासक के रूप में पहचाना गया। यही दृष्टिकोण भजन लेखकों द्वारा भी अपनाया गया है। क्योंकि भजन ८ का तथा १०४ का संकलन भी १००० से ९०० ई. पूर्व माना जाता है अतः यह विश्वास कि परमेश्वर सर्वसृष्टिकर्ता है तथा उसने आकाश और पृथ्वी को सृजा है। "हे प्रभु हमारे स्वामी'' ८ः१९ में "प्रभु'' हेतु दो भिन्न इब्रानी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है प्रथम "याहवे'' तथा दूसरा "अदोनाई'' जिसे इंग्लिश अनुवादों में "सर्वोच्च'' वही उ(ारकर्ता ;निर्गमन का प्रभुद्ध या स्वामी अनुवादित किया गया है।
जब इसरायली प्रभु के "नाम'' के विषय में सोचते थे उनके विचारों में दो महत्वपूर्ण बातें होती थी। प्रथम परमेश्वर का चरित्र तथा दूसरा परमेश्वर के कार्यकलाप।

Tuesday, January 20, 2009

सृष्टि रचना की पुनरावृत्ति कविता रूप में की गयी है।

उपरोक्त भजनों की तिथि का आकलन करना कठिन है परंतु "भजन ८'', जिस भजन संग्रह में आता है वह तिथि संभवतः १००० से ९०० ई.पू. के मध्य है।''१ इस तिथि के संदर्भ में एक लेखक कहते हैं कि "कुछ टीकाकारों के विरोध स्वरूप भी हम इसे बंधुवाई पूर्व का भजन मानने को तैयार है।''२ उक्त दोनों को देखने पर हमारे विचार में उत्पत्ति के प्रथम अध्याय में वर्णित सृष्टि रचना की पुनरावृत्ति कविता रूप में की गयी है।
भजन १०४ की यद्यपि कोई निश्चित तिथि नहीं है परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि यह भी बंधुवाई पूर्व का भजन है। पु.नि. के विद्वान जिनमें गंकुल-बट्टनवाइजर, आदि भी उक्त समयाकाल से सहमत हैं। इस भजन का केन्द्र बिंदु याहवें की महिमा उसके सृष्टि कार्य हेतु है तथा
पृथ्वी पर उसका निरंतर प्रगटन तथा सब कुछ उसकी इच्छा पर निर्भर है। इस भजन में तत्कालीन इसरायली संस्कृति के चारों ओर फैली संस्कृतियों में प्रचलित कथाओं की ध्वनि भी प्रतीत होती है। जैसे प्राचीन आयरेनियम विचार में देवी को प्रकाश सदृश्य वस्त्र में लपेटते थे, बाबुलीय कथा में दक्खिनी हवा के पंखों का संदर्भ आता है, "प्राचीन मिस्त्री संदर्भ में सूर्य देवता हेतु, फिरौन "अमेनोफिस चतुर्थ'' द्वारा एक स्तुति गान लिखा गया। हमारे भजन की १-५ तथा १०-२६, पदों में समानता प्रदर्शित होती है।''३ इन भजनों में परमेश्वर को प्रकृति के परमेश्वर के रूप में देखा गया है। उसे तीन प्रमुख स्वरूप दिये हैं दोनों भजनों में।

Saturday, January 17, 2009

भजन भक्तिगीत का उत्कृष्ट उदाहरण है।

काव्यात्मक शैली के आधार पर यह भजन भक्तिगीत का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें सृष्टिकर्ता परमेश्वर तथा अपने लोगों को बचाने वाले परमेश्वर की स्तुति की गयी है। प्रथम तथा अंतिम पद प्रशंसा गान हैं इसकी संरचना इस प्रकार है
१। परमेश्वर का सार्वभौमीय वैभव
२। परमेश्वर का रहस्यमयी मार्ग
३। मानव को गौरव प्रदान करना
प्रकृति संबंधी भजनों में भी हम सृष्टिकर्ता का स्वरूप तथा भजन लेखकों का विचार पाते हैं। विशेषतः भजन ८, तथा १०४ में परमेश्वर के सृष्टि के कार्य संबंध में बताया गया है। यद्यपि न ही भजनों में न ही पु.नि. में पर्यावरण शब्द आया है परन्तु प्रकृति शब्द को हम पाते हैं जो उक्त शब्द से सम्बन्धित है।

Wednesday, January 14, 2009

भजनों में सृष्टिकर्ता का स्वरूपः

बाबुली में यह विश्वास किया जाता है विश्व रचना देवी तथा देवता के मध्य टकराव का नतीजा है। मार्दुक तियामत नामक देवी पर विजयी हुआ तथा उसके शरीर से आकाश तक पृथ्वी को बनाया। फारसी लोगों का अपना अलग दृष्टिकोण है कि यु( के मैंदान में निरंतर टकराव होता रहा "आरमाज्ड'' तथा "आरिमान'' के मध्य, फलस्वरूप अरमाज्ड जो अच्छाई का देवता है विजयी हुआ। परंतु इसराएलियों का दृष्टिकोण सृष्टिकर्ता के लिये बिल्कुल भिन्न हैं क्योंकि वे मानते हैं कि परमेश्वर एक मात्र सृष्टिकर्ता है। उसी के द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की गयी है।

"परमेश्वर ने प्रारम्भ में आकाश और पृथ्वी को रचा.......... और देखो वह बहुत अच्छी थी।'' इसरायिलियों द्वारा सम्पूर्ण प्रकृति के परमेश्वर की महान रचना माना गया है। इनका दृष्टिकोण में सृष्टिकर्ता को शक्तिशाली सम्पूर्ण प्रकृति को नियंत्रण करने वाला माना गया है। साथ ही इसरायिलियों का विचार था कि परमेश्वर प्रकृति के माध्यम से आश्चर्य कर्म करता है, जैसे "जलती हुई झाड़ी का प्रकाशन''। परमेश्वर सम्पूर्ण प्रकृति अपने ज्ञान के द्वारा नियंत्रण रखता है।

Tuesday, January 13, 2009

अंततः पुराहितों के एक वर्ग ने इनको एक संग्रह का रूप दिया।


अंततः पुराहितों के एक वर्ग ने इनको एक संग्रह का रूप दिया। अतः भजनों का संकलन तथा तिथि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लगभग १००० वर्षों में इनका संकलन हुआ तथा ई. पू. ७०० से १५० ई. पू. के बीच इनका लेखन काल हुआ यद्यपि इस विवेचन का तात्पर्य यह था कि हम भजन ग्रन्थ के अन्तर्गत "प्रकृति संबंधी दृष्टिकोण'' का सही मूल्यांकन करें।

उसकी व्यापकता एक "लेखक'' तक सीमित नहीं एवं उसकी निरन्तरता एक काल तक सीमित नहीं। इसलिए इस्रायली समाज अपनी आराधना में यह दृष्टिकोण रखता है।

Sunday, January 11, 2009

मुख्य तरह के भजन संग्रह में बंधुवाई पूर्व के हैं।

विलाप गीत की पुस्तक तथा कुमरान से होधामोथ लूका का प्रथम भजन तथा पांच भजन जो केवल सीरियक अनुवाद में स्थानान्तरित किये गये हैं: इन्हें नकारा नहीं जा सकता है। "बिना किसी संदेह के यह दर्शाते हैं कि मुख्य तरह के भजन संग्रह में बंधुवाई पूर्व के हैं। यहां तक कि लघु कविताओं जो इनमें अंतर्विष्ट है वह कुमरान से भी कहीं अधिक प्राचीन है तथा जिनका उपयोग भजनों के शैली या वाध्य विन्यास विन्यास, कल्पना तथा विचारों को बढ़ाने में किया गया है जो स्वतंत्र उ(रण के रूप में हैं।''७

Friday, January 9, 2009

भजनों कि वास्तविक तिथि भजनों की स्थिति तथा व्याख्या पर निर्भर है।

भजनों कि वास्तविक तिथि भजनों की स्थिति तथा व्याख्या पर निर्भर है। मुख्यतः वह भजन जिनमें राजा के विषय बताया गया है तथा जो भजन बंधुवाई पूर्व का समय तथा राजतंत्र एवं मकाबियन काल को बताते हें। "प्रमाणिक भजन तथा गीता जो कुमरान समुदाय द्वारा छोड़े गये हैं, इनकी शैलीगत भिन्नता को देखते हुये यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भजन संग्रह में कोई भी मकाबी गीत नहीं है।''६ सेपत्पवांगिता में महिमा गान यह बताता है कि भजनों का वास्तविक संग्रह पंचग्रंथ के विभाजन के समय ही समाप्त हो गया था। ग्रीक अनुवाद तीसरी शताब्दी ई. पू. का है।

Thursday, January 8, 2009

"ए गाइड टू द साम्स'' में भजन संहिता का लेखक संग्रह काल को ८०० वर्षों में पूरा होना बताते हैं


"जान हरग्रीवेस नामक विद्वान अपनी पुस्तक "ए गाइड टू द साम्स'' में भजन संहिता का लेखक संग्रह काल को ८०० वर्षों में पूरा होना बताते हैं वह ४ प्रकार से तिथिवार विभाजित करते हैं।''१. १००० से ९००० ई. पू. का कालः भजन ३-४१ यरूशलेम के चारों ओर से क्षेत्रवार एकत्रित किय गया इसमें दाउद लिखित भजन भी सम्मिलित हैं।
२. ६५० ई. पू. का कालः भजन ४२-८९ इस समय एकत्रित किये गये इन भजनों में "माहवे'' शब्द के स्थान पर
एलोहीम शब्द का प्रयोग परमेश्वर हेतु किया गया है। इसके साथ ही अन्य व्यक्तिगत नामों का प्रयोग किया गया है।
३. ४६० ई. पू. का कालः जब इसरायिली बंधुवाई से लौटकर आये मुख्यतः धार्मिक कार्यों तथा
त्योहारों में प्रयोग करने हेतु। इनमें तीन प्रकार के भजन हैं।
अ। ११३-११८ स्तुतिभजन-फसह पर्व, पंतिवुस्त तथा तंबुपर्व हेतु।

ब. १२०-१३४ उदीयमान भजन-उक्त पर्वों के पूर्व प्रयोग में लिये जाते थे।

स . हलिलूयाह या ईश स्तुति भजन १४५-५०

Monday, January 5, 2009

इसरायलियों द्वारा परमेश्वर की स्तुति में भजनों का प्रयोग प्रभु यीशु के आने के हजारों वर्ष पूर्व से किया जाता रहा है

इसरायलियों द्वारा परमेश्वर की स्तुति में भजनों का प्रयोग प्रभु यीशु के आने के हजारों वर्ष पूर्व से किया जाता रहा है तथा इनमें से सैकड़ों भजनों को लिपिबद्ध किया गया। तथा कुछ समय पश्चात्‌ १५० भजनों को चुना गया तथा उसे एक पुस्तक संग्रह का स्वरूप दिया गया। परंतु प्रत्येक भजन का प्रथम प्रयोग तथा उपयुक्त लेखन तिथि बताना असम्भव है। "भजनों का एक लम्बा समय है जो मूसा १४१० बी. सी. से प्रारम्भ होकर बंधुवाई पश्चात्‌ का समुदाय एजा तथा नहेम्याह लगभग ४३० बी. सी. तक फैला हुआ है।''४ भजनों के विस्तृत क्षेत्र के कारण तथा भिन्न परिस्थितियों में भिन्न प्रकार के लोगों हेतु लिखे जाने के कारण इनका अपना अलग महत्व है। भजन संग्रह में कई प्रकार के भजन हैं जो कुछ तो दाउद के काल के हैं तथा कुछ निर्वास काल के भी हैं अतः "भजनों के काल का निर्धारण ई. पू. १००० से ई. पू. १५० तक किया जा सकता है।''५

Friday, January 2, 2009

यह भाजन दाउद स्तुति में किसी इसरायली द्वारा लिखा गया हो।

स्वयं दाउद के शीर्षक युक्त भजनों को भी दाउद की रचना नहीं कही जा सकती है क्योंकि ''दाउद का भजन कार होना उस लोकप्रिय विश्वास से साम्य नहीं दर्शाता जहां शमूएल तथा राजाओं की पुस्तकों में से एक योद्धा के रूप में दर्शाया गया है।''३ दाउद का लेखक न होने के प्रति एक और तर्क इस आधार पर दिया जा सकता कि ला दाविद, दाउद का आरोपण से ही यह नहीं समझना चाहिये कि उक्त भजन दाउद द्वारा लिखा गया, परंतु ऐसा भी संभव है कि यह भजन राजकीय रूप में दाउद की स्तुति में किसी इसरायली द्वारा लिखा गया हो।

Thursday, January 1, 2009

दाउद भी भजनों का रचियता है

भजनों के लिखने वालों में कई प्रकार के लोग है। दाउद भी भजनों का रचियता है परन्तु केवल दाउद को ही सब भजनों का लेखक मानना तर्कसंगत नहीं है। यद्यपि लगभग ७३ भजनों में दाउद का नाम दिया गया है। इसमें सुलैमान तथा मूसा द्वारा लिखित भजन पाये जाते हैं क्रमशः ७२, १२७ तथा ९० भजन। यद्यपि विद्वानों द्वारा दाउद का लेखक होने को चुनौती दी गयी है। भजन ५०, एवं ७३-८० जिनका शीर्षक आसप का भजन है का लिखा हुआ माना जाता है। ÷÷श्?यद्यपि कई विद्वानों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि भजनों को साहित्य रूप में रचने का कार्य राजतंत्र अर्थात्‌ दाउद से बंधुवाई के प्रारम्भ में किया गया।''२