यह विचार भी बताया है कि परमेश्वर संपोषक है तथा वह इस प्रक्रिया को निरंतर करता है। "सब कुछ परमेश्वर के आत्मा द्वारा सृजा गया है जो निरंतर पृथ्वी की प्राकृतिक जीवन को साल दर साल नया करता है'' तात्पर्य यह कि परमेश्वर का हस्तक्षेप नियनित रूप से प्रकृति में है अतः हमें प्रकृति का आदर करना चाहिए तथा परमेश्वर की तरह प्रकृति का सम्मान कर उसकी देखभाल करना चाहिए।
इसरायली दृष्टिकोण में परमेश्वर मनुष्य को अपना प्रतिनिधि ठहराता है ताकि वह उन अधिकारों तथा सामर्थ का उपयोग कर सकें। भजन ८ के पद ५ और ६ परमेश्वर द्वारा मनुष्य को सृष्टि में विशेष स्थान दिया गया है। "सब कुछ उसके पावों तले कर दिया।'' इस पद में भजनकार का तात्पर्य है कि अधिकार प्रतिनिधित्व करने हेतु दिया गया है प्रभुता या शासन करने हेतु नहीं। इसके विपरीत कई विद्वान यह आक्षेप लगाते हैं कि बाइबलीय सृष्टि का सि(ान्त पृथ्वी तथा उसके स्त्रोतों के दोहन का कारण है। १९६६ में "लियान व्हाइट'' नामक विद्वान ने भी अपने शीर्षक "दी हिस्टोरिकल रूट्स आफ इकालॉजिकल क्राइसिस'' में कुछ इसी प्रकार का प्रश्न उठाते हैं।
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